PDF Title | Who Moved My Cheese |
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Hindi Title | मेरा चीज़ किसने हटाया |
Pages | 48 Pages |
PDF Size | 2,005 KB |
Language | Hindi |
Sub-Category | |
Source | Manjul |
Who Moved My Cheese (मेरा चीज़ किसने हटाया) – Download
वे अपने साथ हो रही घटनाओं को नकारने की कोशिश कर रहे वे। परंतु उन्होंने पाया कि भूख के कारण नींद लगना दिनोंदिन ज़्यादा मुश्किल होता जा रहा था, अगले दिन उनमें कम ताकत बची रहती थी और वे काफी ‘िड़चिड़े होते जा रहे थे। टला मु बहने खतरा और आरामदेह नहीं लग रहे वे लितने कि ते पहले लगा कहते ये। लोगों को सोने मं भी दिन आ रही थीं और जब नींद आती थी तो चीज़ न मिलने की वजह से उतर सपने । ‘परंतु हैम और हाँ अब भी चीज़ स्टेशन ‘सी” * में जाते थे और हर रोज़ वहाँ बैठकर अपने चीज़ का इंतज़ार करते थे। हेम ने कहा, “देखो, अगर हम ज़्यादा मेहनत करें, तो हम यह जान लेंगे कि दरअसल कुछ भी नहीं बदला है। चीज़ शायद आस-पास ही कहीं है। हो सकता है उन्होंने उसे दीवार के पीछे छुपा दिया हो।” अगले दिन हेम और हाँ औज़ारों के साथ आये। हेम ने छेनी पकड़ी और हाँ हथौड़ा मारने लगा। आखिर, उन्होंने चीज़ स्टेशन “सी’ की दीवार में छेद कर ।
उन्होंने ही लिया अंदर झांका पर उन्हें चीज़ नहीं दिखा। बे निराश ये परंतु उन्हें भरोसा था कि वे समस्या को सुलझा सकते हैं। इसलिये उन्होंने जल्दी आना, देर तक रुकना और ज़्यादा मेहनत करना शुरू कर दिया । परंतु कुछ समय के बाद उनकी कड़ी मेहनत का नतीजा उन्हें दीवार में एक बड़े छेद के रूप में ही मिला। काम करने और सही काम करने के बीच के अंतर को हाँ धीरे-धीरे महसूस करने लगा था। हैस ने कहा, “सबसे बढ़िया नीति यह है कि हम यहाँ पर बैठकर इंतज़ार करते रहें और देखें कि क्या होता है। देर-सबेर उन्हें चीज़ वापस रखना ही पड़ेगा।” हाँ इस बात पर भरोसा करना चाहता था। इसलिये हर रोज़ शाम को वह घर पर आराम करने जाता जग और हुर सुबह मत मारकर हैस के साथ चीज़ स्टेशन ‘सी’ की तरफ लौटता था। पर चीज़ फिर कमी वापस ‘आया। अब तक छोटेलोग भूल और तनाव की वजह से कमघोर हो चुके े। हँ स्थिति के सुने का इंतज़ार करते-करते थक रहा था। उसे यह महसूस होने लगा कि वे चीज़ के बिना जितना ज़्यादा समय गुज़ारेंगे, उनका हाल उतना ही बुरा होता जायेगा। हाँ यह जानता था कि स्थिति पर उनकी पकड़ दीली होती जा रही है। आखिर एक दिन हाँ खुद पर हँसने लगा । “जो. … हो. … हो, मेरी तरफ देखो। मैं बार-बार वही करता रहा और ताज्जुब करता रहा कि हालात क्यों नहीं सुधर रहे हैं। कितने मज़े की बात है और बेवकूफी की भी।”