PDF Title | Samaveda ( सामवेद) |
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Pages | 328 Pages |
PDF Size | 15.8 MB |
Language | Hindi |
Sub-Category | |
Source | vedpuran |
Samaveda(सामवेद) – Download
उक्त प्रयोग ऋषियों द्वारा किये गये प्रयोगों की तुलना में चाहे जितने हल्के कहे जाएँ, किन्तु उनसे अब भी भाव- प्रवाहों की क्षमता तो, प्रमाणित हो ही जाती है । प्रकृति की इस व्यवस्था का लाभ आज भी इस विद्या को विकसित करके उठाया जा सकता है। भावों को उभारने और साम्प्रेषित करते में गायन का महत्त्व हमेशा रहा है और आज भी है। वेद ने भो इसोलिए उसका उपयोग विशेषज्ञता के साथ किया है। अभिव्यक्ति के तीन माध्यमों (१) गद्य (२) पद्च और (३) गायन में, गायन को भाव-विद्या में सबसे अग्रणो देखकर उसे विशेष महत्त्व दिया गया । ज्ञान की अभिव्यक्ति की उक्त तीन विधाओं के कारण वेद को तीन प्रवाहों- युक्त “वेद त्रयी” कहा गया । यह विभाजन इन तीन विधाओं के आधार पर है, न कि पुस्तकाकार संकलनों के आधार पर । पुस्तकाकार संकलन विषयानुसार भले ही चार भागों में किये गये हैं, किन्तु वे इन्हीं तीन धाराओं के अंतर्गत आजते हैं।