PDF Title | Sadhak Sanjivani |
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Hindi Title | साधक संजीवनी |
Pages | 1264 Pages |
PDF Size | 19.1 MB |
Language | Hindi |
Sub-Category | |
Source | Gitapress,Gorakhpur |
Sadhak Sanjivani (साधक संजीवनी) – Download
(३) साधकका संतों और शास्त्रोंके वचनोंपर जितना अधिक विश्वास होगा, उतनी ही उसमें स्थिरता आयेगी। *आत्मविनिग्रह: ‘–यहाँ आत्मा नाम मनका है, और उसको वशमें करना ही ‘आत्मविनिग्रह’ है। मनमें दो तरहकी चीजें पैदा होती हैं–स्फुरणा और संकल्प | स्फुरणा अनेक प्रकारकी होती है और वह आती-जाती रहती है।
पर जिस स्फुरणामें मन चिपक जाता है, जिसको मन पकड़ लेता है, वह “’संकल्प’ बन जाती है। संकल्पमें दो चीजें रहती हैं– राग और द्वेष। इन दोनोंको लेकर मनमें चिन्तन होता है। स्फुरणा तो दर्पणके दृश्यकी तरह होती है। दर्पणमें दृश्य दीखता तो है, पर कोई भी दृश्य चिपकता नहीं अर्थात् दर्पण किसी भी दृश्यको पकड़ता नहीं।
परन्तु संकल्प कैमरेकी फिल्मकी तरह होता है, जो दृश्यको पकड़ लेता है। अभ्याससे अर्थात् मनको बार-बार ध्येयमें लगानेसे स्फुरणाएँ नष्ट हो जाती हैं और वैराग्यसे अर्थात् किसी वस्तु, व्यक्ति, पदार्थ आदिमें राग, महत्त्व न रहनेसे संकल्प नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार अभ्यास और वैराग्यसे मन वशमें हो जाता है (गीता–छठे अध्यायका पैंतीसवाँ श्लोक) ।