Invincible Thinking (अपराजित सोच) :: PDF

Invincible Thinking (Hindi) - Okawa, Ryuho

PDF Title Invincible Thinking
Hindi Title अपराजित सोच
Pages 72 Pages
PDF Size 2.1 MB
Language Hindi
Sub-Category
Source http://www.jaicobooks.com/j/j_home.asp

 

Invincible Thinking (अपराजित सोच) – Download

(॥) आत्म चिंतन और प्रगति को जोड़नेवाला सिद्धांत अपने संस्थान में, मैने चौहरे मार्ग- प्रेम, बुद्धिमता, आत्म चिंतन और प्रगति के सुख के सिद्धांत के रुप में शुरूआत की है। इस पुस्तक का हि विषय “अपराजित सोच” एक दर्शन है जो आत्म चिंतन और प्रगति को जोड़ता है। सामान्यतः जब लोगों की सोच सकारात्मक होती है, तो वे सोचने लगते हैं कि इसके लिए सकारात्मक और रचनात्मक ढंग से आगे बढ़ना ही काफी है। किंतु हमें इसे आत्म चिंतन, जो कि मानव सुख में अनुसंधान संस्थान (हैपी साइंस) की मूल शिक्षाएं हैं, से मिलाकर विचार करना होगा। यदि लोगों से कहा जाए कि वे एक दिन अपने विचारों और कार्यों पर चिंतन करें और फिर सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ें तो कुछ तो दोनों के बीच डगमगाने लगेंगे कि किस पर ध्यान केन्द्रित किया जाए।

अब तक मैंने व्यक्ति को कोई भी पद्धति अपनाने का निर्णय लेने की छूट की छूट दे रखी थी और इससे कुछ भ्रम पैदा हो जाता है। इस कारण से, अपराजित सोच के विचार को इन दो से जोड़ने के रूप में शुरूआत की है जिससे यह सिद्धांत और स्पष्ट हो जाता है। मैं चाहता हूँ कि आप अपराजित सोच का इस्तेमाल तब करें जब आपके पास किसी समस्या को सुलझाने का और कोई उपाय न हो क्योंकि ये एक प्रभावशाली दर्शन हैं जिसमें आत्म चिंतन ओर प्रगति दोनों शामिल हैं। सकारात्मक सोच अपनाते समय लोग उसकी छाया को नहीं देखते चीजों के बुरे पक्ष पर नजर नहीं डालते। वे केवल प्रकाश की ओर उज्जवल भविष्य की ओर देखते हैं या चीजों पर केवल रचनात्मक दृष्टि से नजर डालते हैं, हालांकि यह दर्शन बहुत कारगर है किंतु यदि इस दिशा पर केन्द्रित रहेंगे तो आत्म चिंतन के लिए इसमें कोई जगह नहीं है। नि आप कितने ही सकारात्मक और दूंरदेशी बने रहे कई बार समय ठीक नहीं होता।

मुझे विश्वास है आपने पहले भी कई विफलताएं देखी होंगी। क्या ऐसे अवसरों पर यह ठीक होगा कि इसको अनदेखा कर लापरवाही से आगे बढ जाएं। संभवत: आपने स्वयं से कहा हो कि जब तक आप आगे बढ़ते रहेंगे सब कथा ठीक ठाक चलता रहेगा। बस आपका रवैया हमेशा सकारात्मक होना चाहिए। यदि आप गिर जाते हैं या कर बैठते हैं तो आप संभवतः कहते हैं, “इन चीजों की मैं परवाह नहीं करता, मैं केवल प्रकाश में रहना चाहता हूँ, आखिरकार एक व्यक्ति की प्रवृत्ति अनिवार्यतः प्रकाश की ओर होती है।” जो लोग सकारात्मक सोच अपनाते हैं वे इसी प्रकार सोचते हैं किंतु क्या यही सब जीवन है? क्या लोगों की भावनाएं इतनी सरल है ? मानव जाति का दिल और दिमाग समझने के बाद मुझे मजबूरन अपने आप से पूछना पड़ा, क्या इतना ही काफी है। क्‍या लोगों को एक ही दिशा में आगे बढ़ना, केवल एक प्रकार की ही सोच अपनाना पर्याप्त है ? नहीं, कदापि नहीं। लोगों के दिलो-दिमाग गहन भावनाओं और विचारों से भरे पड़े है अतः इस सब पर विचार करने के लिए गहरे दर्शन की भी आवश्यकता है।